प्रिय नवाज़ शरीफ़ साहब,
कुछ ऐसे रहस्य होते हैं जिनके बारे में सबको पता होता है. आप संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण में क्या बोलेंगे ये भी एक ऐसा ही रहस्य था. प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका में पहुंचने के बीच केवल यही एक खबर थी जिसने भारतीय टीवी चैनलों में अच्छी खासी जगह बनाई. दरअसल पाकिस्तान के संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर के राग अलापने के हम सभी आदि हो चुके हैं. लेकिन फिर भी इस बात की उम्मीद तो रखी ही जाती है कि पाकिस्तान कभी तो इससे आगे बढ़ेगा. लेकिन इस बार भी ऐसी कोई उम्मीद बेमानी ही साबित हुई. आपने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर, दोनों देशों के बीच के विवाद और आतंकवाद पर आपकी लड़ाई के मुद्दे को हमेशा की तरह फिर उठाया.
आपने अपने संबोधन में भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत को जारी रखने की बात कही. आपने कहा कि दोनों देशों को अपने आपसी विवाद और व्यापारिक रिश्तों को मजबूत करने के लिए आपस में मिलते रहना चाहिए. आपने कहा कि शांति और सौहार्द से फायदा दोनों देशों को होगा. इसी बात को जारी रखते हुए आपने ये भी कहा कि आपका देश भारत और पाकिस्तान के बीच विदेश सचिव स्तर की वार्ता को रद्द करने से निराश हुआ है. आपने इसे एक गवांया हुआ मौका बताया.
लेकिन ज़रा शरीफ़ साहब इस बात को भी साफ तौर पर दुनिया के सामने कह देते कि ये मौका दोनों देशों ने इसलिए गंवाया है क्योंकि पाकिस्तान इस द्विपक्षीय वार्ता में भी एक तीसरे पक्ष से पूछ कर अपना रूख स्पष्ट करता चाहता था. साहब ये हम ही थे जो पहले से रुकी इस बातचीत को तैयार हुए थे. बातचीत के लिए तैयार होने का मतलब झुकना नहीं होता बल्कि ये तो उसी अमन और शांति के लिए हमारी ओर से किया गया प्रयास था जिसे शब्दों में पिरोकर आपने कहा. अगर बातचीत आपको भारत से करनी थी तो आप अपना रुख तैयार करते, कश्मीर के अलगाववादियों के रुख को जानकर आगे बढ़ना क्यों ज़रूरी था ये भी बता देते तो अच्छा होता. ये बात बार बार कहने की जरूरत नहीं, आप भी एक लोकतांत्रिक सरकार चला रहे हैं दो पक्षों का मतलब आप भी बखूबी समझते होंगे.
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री साहब, दोनों देशों की बातचीत को आप आगे भी ना बढ़ा पाए थे कि आपने अपनी बातचीत में हमेशा की तरह पूरी दुनिया को न्यौता दे दिया. कश्मीर में जनमत संग्रह की बात आपने कही. संयुक्त राष्ट्र को याद दिलाया कि आपकी नज़र में कश्मीरियों को किस वादे के पूरा होने का इंतजार है. आपने कश्मीर की पीढ़ियों के हिंसा से परेशान होने की बात कही. आपने कहा कि कश्मीरियों को उनके मौलिक अधिकार से वंचित रखा जा रहा है. कश्मीर के मुद्दे को सुलझाने के लिए आपने लाहौर समझौते को याद दिलाया वहीं दूसरी ही लाइन में आपने सारे वैश्विक समुदाय को इस मुद्दे को सुलझाने के लिए अपील और आमंत्रण दोनों दे दिया. कश्मीर के मसले पर आपने ये भी कहा कि आप आपसी बातचीत के लिए तैयार हैं. और इस मुद्दे में एक पक्ष होने की वजह से इसका समाधान चाहते हैं.
शरीफ़ साहब ज़रा जो कुछ आपने कहा उसे दोबारा सोचिए, क्या आप एक ही समस्या को तीन तरीके से सुलझाना चाहते हैं? आप पूरी दुनिया को कश्मीर मसले पर क्या सोचकर आमंत्रित करते हैं? आपने ही कहा कि कश्मीर के मसले पर आप एक पक्ष हैं तो साफतौर पर दूसरा पक्ष भारत है. और फिर दो पक्षों के बीच में वैश्विक मंच को आमंत्रित करना कहां तक उचित है? आपने कश्मीरियों के जिस हिंसा से ग्रस्त होने की बात कही वो भी तो आपकी जमीन पर तैयार की गई है. जिन आतंकवादियों को आपने पनाह दी उन्होंने ही उस वादी को लाल किया क्या ये बात ध्यान में है आपके? किस कश्मीर में जनमत संग्रह चाहते हैं आप, वहां जो आज़ादी के बाद से अपने राज्य में पूरे निष्पक्ष तरीके से सरकार का चुनाव करता है या वहां जहां कई सालों तक लोकतंत्र को दबाकर तानाशाह का शासन रहा है. वैसे आपको कश्मीर समस्या के लिए लाहौर समझौता ही क्यों याद आता है? शिमला समझौते पर भी आपके देश के ही प्रतिनिधि ने दस्तखत किए थे. हमारे आपसी विवाद के लिए शिमला समझौता कोई आधार क्यों नहीं हो सकता? वैसे कश्मीर के मसले पर आपसी बातचीत के लिए तैयार हैं तो वो तैयारी दिखाइए. दिखाइए कि आप यहां आतंकवाद को रोकने के प्रयास कर रहे हैं. दिखाइए कि आप सरहद पर किसी भी तरीके की हिंसा नहीं चाहते. कश्मीर पर आपके इस रूख की आदत हो चुकी है हमें. समस्या का समाधान अगर आप चाहते हैं तो तिराहा ना दिखाइए. एक राह तैयार करिए जिसमें सिर्फ और सिर्फ आप और हम चलेंगे.
संयुक्त राष्ट्र के मंच से वैसे तो आपने काफी कुछ कहा है, लेकिन सुरक्षा और आतंकवाद पर आपके रुख का हमें हमेशा से इंतजार रहता है. आपने हमेशा की तरह ये तो दोहराया कि आप आतंकवाद के खिलाफ हैं. आपने दुनिया को ये भी बताया कि आतंकवाद से सबसे ज्यादा आपने ही खोया है. इस लड़ाई में आपको काफी नुकसान हुआ है. आपने कहा कि आप आतंकवादियों से लगातार लड़ाई लड़ रहे हैं. इस लड़ाई में आपको जन-धन के साथ ही संसाधनों की काफी क्षति हुई है.
हमने ये सब सुना लेकिन वो नहीं जो शायद हम हमेशा से सुनना चाहते हैं. हम जानना चाहते हैं कि कब आपके देश में पैदा होने वाले आतंकवाद पर आप पूरी लगाम लगा पाएंगे. कब आपके देश में इन ताकतों को कुचला जाएगा. आप जिस आतंकवाद से लड़ने की बात करते हैं वो जमात-उद-दावा के रूप में आपके देश में घूम रहा है, तो फिर आप लड़ किससे रहे हैं? ये सच है कि आपने इस लड़ाई में काफी कुछ खोया है, लेकिन क्या ये सच नहीं कि ये आपका ही बोया हुआ था. साहब आपने संसाधनों को खोने की बात करके एक बार फिर हथियारों की दौड़ की शुरूआत की है. मुंबई हमले के सबूतों के बंडल देकर भी हमने क्या आपकी जमीन से न्याय पा लिया?
नवाज़ शरीफ़ साहब, तानाशाही के दौर के बाद पाकिस्तान में आप लोकतांत्रिक तरीके से चुनकर आए. आपने खुद तख्ता पलट होते देखा है. आपने ही इस बात को माना था कि कारगिल युद्ध आपकी जमीन से की गई शुरूआत का नतीजा था. आपसे तो हमने किसी बदलाव की उम्मीद रखी थी, जैसे कि आपकी आवाम ने, जिसने आपको चुना. हम खुद एक अमन पसंद पड़ोस चाहते हैं. सीमा पर शांति, दोनों देशों के लोगों में प्यार और आपसी व्यापार से एक दूसरे का विकास. क्या ये वो सपना है जो कभी पूरा नहीं हो सकता? ज़रा उस राह को छोड़िए जिस पर आप पिछले 67 सालों से चल रहे हैं. रास्ते बदलने से मंजिल भी बदल जाती है. क्या पता इस बार बदलाव अमन और चैन की राह दिखा दे.
उसी राह पर चलने को तैयार,
आपका पड़ोसी.