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5 Jun 2014

क्योंकि यहां से 80 सांसद नहीं हैं!

अगर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से ये पूछा जाए कि उत्तर प्रदेश में लगातार हो रहे बलात्कार पर उनका क्या कहना है तो वो क्या कहेंगे? जवाब मैं नहीं दे रहा हूं, जवाब आप सोचिए और आगे पढ़ने से पहले उस जवाब को पक्का कर लीजिए. तो अब आगे पढ़िए जवाब जो भी हो उसके बाद आप एक सवाल और जोड़ लीजिए कि साहब बालोद में जो हुआ वो क्या है? फिर जवाब सोचिए, शायद आप सोच नहीं पाएंगे क्योंकि आपको खुद नहीं पता के बालोद में क्या हूआ है. गूगल सर्च करिए बालोद के नाम से, एक जिला है ये. छत्तीसगढ़ राज्य का एक जिला. खैर छोड़िए आपको इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि बालोद क्या है. वैसे भी गूगल के सर्च से बालोद कहां है यही पता चलेगा. शायद ये नहीं कि क्यों मैं आपको ऐसा करने के लिए कह रहा हूं.

रमन सिंह से लेकर सारे नेता आपको उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था की बुराई करते दिखाई दे सकते हैं. क्यों सिर्फ इसलिए कि वहां से 80 सांसद आते हैं? या फिर इसलिए कि वहां जो हो रहा है वो लगातार मीडिया की सुर्खियां बना हुआ है. बदायूं में रेप से लेकर अलीगढ़ की घटना तक सब कुछ निश्चित रूप से शर्मनाक है. लेकिन क्या ये शर्मनाक नहीं है कि बलात्कार पीड़िता एक बच्ची अपनी मेडिकल जांच तक के लिए इधर से उधर जाने को मजबूर हो. बच्ची की उम्र भी कितनी सिर्फ 3 साल! जरा सोचिए कि क्या गुजरी होगी उस लड़की के माता पिता पर जो ऐसी हालत में भी अपनी बच्ची को लेकर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटक रहे हैं. सलाम है उनकी हिम्मत को जो अपनी बच्ची को इंसाफ दिलाने के लिए वो इतना कुछ कर गए. अब जानिए ये घटना है बालोद की, छत्तीसगढ़ राज्य का एक जिला.

बालोद जिले के गांव बड़ेजुंगेरा में एक बच्ची अपने भाई के साथ साइकिल की दुकान पर आती है, वो वहां खेलने रुक जाती है और फिर साइकिल दुकान मालिक उस बच्ची के साथ बलात्कार करता है. पीड़ा यहां खत्म नहीं होती बल्कि शुरू होती है. बच्ची अपने घर पर सारी बात बताती है, माता-पिता पुलिस के पास शिकायत करने जाते हैं और फिर शुरू होती है व्यवस्था की सच्चाई. मेडिकल जांच के लिए बच्ची को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भेजा जाता है, यहां महिला डॉक्टर नहीं होने के कारण जिला अस्पताल भेजा जाता हैं यहां भी महिला डॉक्टर अनुपस्थित मिलती है. बच्ची को दुर्ग के अस्पताल और फिर जिला अस्पताल भेजा जाता है दोनों जगहों पर वही कहानी दोहराई और तिहराई जाती है. उसके बाद बच्ची को रायपुर भेजा जाता है. प्रदेश की राजधानी में बच्ची को न्याय मिले ना मिले 3 घंटे का इंतजार मिलता और फिर शाम 7 बजे के बाद उस बच्ची का मेडिकल हो पाता है.

क्या इस बच्ची के साथ जो कुछ हुआ वो किसी भी तरीके सामान्य है? नहीं ना? न्याय पाने के लिए तीन-तीन जिलों में अस्पतालों के चक्कर काटने के बावजूद हम इस घटना को उस कहानी की तरह से नहीं देख पा रहे हैं जो टीवी चैनलों पर लगातार दोहराई जा रही है. कब तक हमारे नेता पार्टी को देखकर अपना दुख प्रकट करेंगे. मैं अखिलेश यादव से कतई सहमत नहीं हो सकता पर क्या वो ये सच नहीं कह गए कि मीडिया केवल उत्तर प्रदेश दिखाता है? बालोद में ना तो राहुल आएंगे ना ही मायावती. केंद्रीय गृह मंत्री भी इस मामले में कुछ नहीं कहने वाले. क्यों सिर्फ इसलिए कि यहां से 80 सांसद नहीं आते? या सिर्फ इसलिए की ये चैनलों की ओबी वैनों की पहुंच से बाहर है? संयम बड़े काम की चीज है. राज्य के मंत्री अब तक संयम रखे हैं और अखिलेश ज्यादा बोल कर मीडिया के निशाने पर हैं. मैं किसी को निशाना बनाना नहीं चाहता पर केवल इतना पूछना चाहता हूं कि क्या इस बच्ची को इंसाफ के लिए बदायूं जाना पड़ेगा? या बालोद की इस घटना को लोगों के सामने आने के लिए उत्तर प्रदेश में होना जरूरी था. 

इसे केवल पढ़िए मत, खुद से और जो भी जिम्मेदार हों उनसे ये सवाल पूछिए कि हमें सभ्य समाज बनाने के लिए कितने बदायूं, कितनी निर्भया और कितनी ही ऐसी घटनाओं का सामना करना पड़ेगा? बलात्कारियों को पकड़कर सजा देना फिर भी आसान है लेकिन व्यवस्था के दोषों का समाधान कब तक होगा? कब तक लोग सोते रहेंगे? कब तक पुलिस निष्क्रिय रहेगी? कब तक अस्पताल ऐसे ही खाली रहेंगे? सवाल पूछना होगा, और सांसदों, विधायकों, कैमरों की संख्या देखकर नहीं. क्योंकि बलात्कार, बलात्कार है इसे अपराध की तरह देखिए धटना या कहानी की तरह नहीं. अगर हम जागे हैं तो इसे और बताएं क्योंकि जब व्यवस्था का नंगापन दिखता है तो वो शर्म से कुछ कपड़े अपने उपर डालती है. मजबूर करें इसे कि ये सुधरे.

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