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17 May 2014

यही जनादेश है

16 मई 2014, सुबह के 10 बजे, मुख्तार अब्बास नकवी भाजपा के केंद्रीय कार्यालय से निकलते हैं और ढोल बजाते हैं, कार्यकर्ताओं के साथ हर्षवर्धन नाचते हुए नजर आते हैं. जैसे-जैसे दिन आगे बढ़ता है कहीं पटाखे फूटते हैं तो कहीं गुलाल उड़ाया जाता है. किलो के किलो मिठाई बांटी जा रही हैं. कारण साफ है जीत का जश्न मानाया जा रहा है. एक ऐसी जीत जिसका अंदाजा कम से कम मुझे तो नहीं था. देश के मतदाताओं ने जो मत दिया था उसका परिणाम हम सबके सामने है. भाजपा देश में पहली बार केवल अपने बूते सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत से भी आगे है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) 300 पार जा रहा है. और ये आज़ाद भारत की पहली गैर कांग्रेसी सरकार होगी जो अपने बूते ही सरकार गठन करने जा रही है. हालांकि निश्चित रूप से इसमें सहयोगी दल शामिल रहेंगे. लेकिन इसे किसी आश्चर्य की तरह लिया जाना ठीक नहीं.

ज़रा इस जीत को समझने की कोशिश की जाए तो साफ तौर पर ये दिखाई देता है कि भाजपा ने इस बार काफी मेहनत की है और उसे अपने संगठन और मोदी के चेहरे का सबसे ज्यादा फायदा मिला है. लेकिन इसके साथ ही साथ भाजपा को फायदा मिला है संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए)-2 की सरकार का. यूपीए-1 में सरकार ने जितने बेहतर काम किए थे, जो कि निश्चित रूप से बेहतर थे उसकी तुलना में यूपीए-2 में सरकार तेजी से नीचे गिरती दिखाई दी है. घोटाले, महंगाई, गिरती अर्थव्यवस्था, भ्रष्टाचार जैसे अनेकों बिंदुओं पर ये सरकार विफल या अक्षम साबित हुई और साफ तौर से भाजपा को इस बात का फायदा मिला है. भाजपा ने इन बिंदुओं को जोर-शोर से उठाया भी. कांग्रेस के साथ दिक्कत ये भी रही कि वो अपनी सफलताओं को भी लोगों के बीच ठीक ढंग से रख नहीं सकी. और कई जगह उसकी सफलता आम आदमी के मुद्दों से इतर नजर आई.

लेकिन फिर भी आंकड़ों के हिसाब से इस जीत को देखने पर कुछ अप्रत्याशित सा नजर आता है. बात उत्तर प्रदेश से ही शुरू करूं तो 80 सीटों वाली इस राजनीति की फैक्ट्री में ऐसा भगवा उत्पाद नजर आया कि शायद खुद भाजपा भी इसके लिए तैयार नहीं थी. 80 में से भाजपा ने 71 सीटें जीतीं हैं, ये ही भाजपा की जीत की रीढ़ है, लेकिन इसमें सबसे बड़ा आश्चर्य ये है कि राज्य में 19.6 फीसदी और देश में 4.2 फीसदी वोट पाने वाली बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) का एक भी सीट ना जीत पाना. इसके कारणों पर विश्लेषण की जरूरत है. लेकिन इसके साथ ही भाजपा की जीत में छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, राजस्थान और उत्तराखंड जैसे राज्यों में मिली बड़ी जीत की अहम भूमिका है.

साफ तौर पर ये वो राज्य हैं जहां पार्टी जीतती रही है या उसका जनाधार है लेकिन इन परिणामों में कुछ ऐसे तथ्य भी सामने आएं हैं जिसे भाजपा आगे भी बनाए रखे तो वो देश में अपने जनाधार को और बढ़ा सकती है. अंडमान निकोबार, अरूणाचल प्रदेश, चंडीगढ़, दादरा नागर हवेली, दमन और दीव, ओडीशा, तमिलनाडू, में पार्टी का खाता खुलना उसके लिए सकारात्मक संकेत है तो वहीं बंगाल की 2, कर्नाटक की 17, झारखंड की 12, जम्मू और कश्मीर की 3, हरियाणा की 7, बिहार की 22, असम की 7, आंध्रप्रदेश की 3 सीटों पर जीत पार्टी के राष्ट्रव्यापी होने का संकेत है. खासकर असम, जम्मू और कश्मीर, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक जैसी जगहों पर जीत पार्टी के हिंदी पट्टी से बाहर हो रहे विस्तार को दिखाता है. तो हरियाणा, झारखंड, बिहार में पार्टी की जीत पार्टी के लिए मौका है कि वो इन राज्यों में क्षेत्रिय दलों के विकल्प के रूप में सामने आ सकती है. 

फिलहाल ये समय है नरेंद्र मोदी का, उन्हें पूरा मौका दिया जाना चाहिए कि वो लोगों की अकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपने सारे प्रयास कर सकें. सरकार से तुरंत किसी परिवर्तन की उम्मीद करना बेमानी होगी. लेकिन हां गठन के 100 दिन बाद ये जरूर पता चल जाएगा कि सरकार किस दिशा में जा रही है. और हां आखिर में ये भी जान लें कि देश के सबसे बड़े दल को देश की 31.1 फीसदी जनता ने चुना है. कांग्रेस 19.3 फीसदी वोटों के साथ दूसरे तो बसपा 4.2 फीसदी वोट के साथ तीसरे स्थान पर है.

कहीं पढ़ा था कि आज के दौर में इस देश में एक पार्टी की सरकार की उम्मीद करना बेमानी है, लेकिन मुझे और मेरे मन में पक्की होती जा रही उस सोच को अपने वोट से बदल कर रख देने के लिए इस देश के मतदाताओं का शुक्रिया. लोकतंत्र की इसी खूबी के कारण तो हम इसके कायल हैं. तो नई सरकार को बधाई.

6 comments:

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    1. शुक्रिया देवेश भैया... कमियां बताएं तो उसपर मेहनत करने में आसानी होगी

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  2. behtreenn likha hai.....

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    1. शुक्रिया नीरज जी...

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  3. कांग्रेस की हार का प्रमुख कारण अपनी उपलब्धियों को जनता तक न पहुंचा पाना है। जहाँ ३१.१ फीसदी जनता ने देश के सबसे बड़े दल को चुना, वहीं १.१ फीसदी (५९.७ लाख) ने नोटा चुना। इंतजार है तो बस नये शासन काल के शुरूआत की। क्या वाकई में अच्छे दिन आने वाले हैं? यह तो वक्त ही बताएगा।

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    1. आंकड़ो वाले ब्लॉग में इसी तरह के कमेंट की उम्मीद थी प्रज्ञा जी. वक्त गुजरने के बाद उम्मीद है आप भी अच्छे या बुरे दिनों का विश्लेषण करेंगी.

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