पृष्ठ

13 Sept 2015

गुरूजी, टीचरों का ख्याल रखिए आप…

5 सितंबर, वो दिन जिसे स्कूल में जाने वाला हर बच्चा जरूर जानता है. इस दिन जब वो या तो अपने स्कूल में होने वाले किसी कार्यक्रम को लेकर उत्साहित रहता है या फिर एक बेझिल कार्यक्रम समझ कर सिर्फ खानापूर्ति करता है. लेकिन एक ऐसे देश में जहां की संस्कृति और संस्कार शिक्षकों को, गुरूओं को विशेष सम्मान और स्थान देने की बात करती हो वहां शिक्षक दिवस को सिर्फ खानापूर्ति के तौर पर निपटाने की परंपरा बनी चली आ रही थी. वो गुरू जो कि किसी शिष्य के जीवन को बदल देता है और सार्थक बना देता है उसके सम्मान के लिए सिर्फ एक दिन का चुनाव वो भी स्कूली इवेंट बनाकर खत्म कर देना इस मार्गदर्शक के साथ न्याय नहीं है.

5 सितंबर पर शिक्षकों की महिमा से जुड़ा लिखा काफी कुछ आपको मिल जाएगा लेकिन 5 सितंबर की तैयारी किसी नेशनल चैनल की हेडलाइन हो ये पहले नहीं होता था. परिवर्तन संसार का नियम है और शिक्षक दिवस खुद इसी परिवर्तन का गवाह बना है. स्कूलों में होने वाले इवेंट से बदलकर ये दिन अब देश में राष्ट्रीय इवेंट के तौर पर मनाया जाता है. पिछले साल से आए इस बदलाव का पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है जिन्होंने इस दिन को राष्ट्रीय महत्व का बनाने की कोशिश की और वो उसमें पूरी तरह कामयाब भी हो गए. इस बार के शिक्षक दिवस को पिछली बार से भी ज्यादा बेहतर तरीके से मनाया गया. ना सिर्फ प्रधानमंत्री बल्कि इस बार राष्ट्रपति भी बच्चों के बीच गए और शिक्षक दिवस पर अपना समय बिताया.

व्यक्तिगत रूप से मैं इस पहल को अच्छा मानता हूं. वो गुरू जो किसी की जिंदगी बना दे खुद उसकी जिंदगी गुमनामी में बीतती जा रही थी. लेकिन इस राष्ट्रीय इवेंट मात्र से हमें खुश नहीं होना चाहिए. हमें ये भी देखना होगा कि इस इवेंट से क्या शिक्षकों की जिंदगी में, उनकी भूमिका में और उनके सम्मान में कोई फर्क पड़ पा रहा है या नहीं. हालांकि प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने शिक्षक दिवस पर एक शिक्षक की भूमिका निभाकर इस दिन की महत्ता को जरूर बढ़ा दिया है. लेकिन ये काफी भी नहीं है. दरअसल गुरू की जो महत्ता इस देश की संस्कृति में दी गई थी उस गौरव तक पहुंचने में हमें शायद कई साल लग जाएंगे. लॉर्ड मैकाले की शिक्षा व्यवस्था ने देश की व्यवस्था को ही बदल कर रख दिया है. लेकिन अब जो बदलाव आया है वो निश्चित रूप से सकारात्मक जरूर नजर आ रहा है.

मोदी जी ने पिछले साल जब शिक्षक दिवस मनाया था तो कई विषयों को उठाया था और इस बार भी उन्होंने ऐसा ही किया है. स्वच्छ भारत अभियान से लेकर बेटी पढ़ाओ तक की बातें उन्होंने किसी ना किसी रूप में कहीं. लेकिन सबसे जरूरी तुलना जो मैं करना जरूरी समझता हूं वो ये कि जो बात उन्होंने पिछले साल कही थी क्या वो उससे एक कदम भी आगे बढ़ सके हैं? क्या अब देश में शिक्षकों की हालत में कुछ सुधार हुआ है? क्या अब कोई छात्र शिक्षक बनना चाहता है? क्या उन सारे सवालों का जवाब हमें मिला है? इस बार बच्चों से बात करते वक्त पीएम मोदी ने बच्चों को योग के शिक्षक बनने का सुझाव दे दिया. लेकिन पिछली बार के शिक्षक एक्सपोर्ट करने की बात पर हर जगह अपने काम का हिसाब देने वाले पीएम मोदी ने इस बार अपनी इस बात का कोई हिसाब नहीं दिया. शायद हिसाब देने लायक आंकड़े उनके पास ना हों या फिर वो हिसाब देने का सोच कर ही ना आए हों. हिसाब देना जरूरी नहीं है. जरूरी ये है कि जिस मकसद से और जितनी बातों को बोलकर शिक्षक दिवस मनाने की बात की गई वो बातें पूरी हो पा रही हैं या नहीं.

हालांकि कड़वी सच्चाई ये है कि देश में पिछले एक साल में भी शिक्षक बनने के लिए कहीं कोई जागृति नजर नहीं आई. अब सरकारी नौकरी के लिए निकले विज्ञापनों पर आए आवेदनों को आधार ना मानें, वो हमेशा ज्यादा ही रहेंगे. जिस तरह चावल के पकने के लिए एक दाना ही जांचा जाता है ठीक उसी तरह जितने बच्चों ने पीएम मोदी से बात की उनमें से किसी एक ने भी प्रधानमंत्री मोदी से ये नहीं कहा कि वो शिक्षक बनना चाहते हैं. पीएम मोदी ने भले ही बच्चों से ये जरूर कहा हो कि शिक्षक बनो लेकिन उनमें से किसी की भी सोच प्रधानमंत्री से बात करके भी नहीं बदली. इस बार पीएम मोदी ने एक नया कॉन्सेप्ट भी लोगों को दिया खासकर बच्चों को वो ये कि वो योग के शिक्षक बनकर विदेशों में टीचर एक्सपोर्ट करना चाहिए. लेकिन क्या पीएम साहब अपने पिछले बार के कॉन्सेप्ट को भी जमीन पर उतारने में कामयाब रहे हैं?

मेरे ख्याल से इस सवाल का जवाब ना में है. क्योंकि प्रधानमंत्री ने पिछली बार बच्चों से शिक्षक बनने की बात कही थी जो इस बार कहीं भी साकार होती नजर नहीं आई. हालांकि इस बार सोच में बदलाव जरूर देखने को मिला लेकिन सोच से ज्यादा जमीनी हकीकत बदलनी चाहिए. जब पीएम ने एक बच्चे से जोर देकर पूछा तब भी वो नहीं माना कि वो शिक्षक बनना चाहेगा. हालांकि इस बार शिक्षक दिवस को मिले सम्मान ने देश में एक सकारात्मक माहौल बनाने का काम किया है. शिक्षक खुद को मिले इस सम्मान से खुश हैं तो वहीं देश के आम लोग भी शिक्षकों की महत्ता को आंक रहे हैं. लेकिन इतना काफी नहीं है सर, पूर्णता कहीं नहीं आती. लेकिन शिक्षक दिवस पर आप बच्चों को महत्व दे रहे हैं ना कि शिक्षकों को. एक बार शिक्षक से पूछ के देखिए कि शिक्षक बन कर कैसा लगता है. बुनियादी सवाल अब भी वही है कि शिक्षक को हम किस रूप में देखते हैं. एक वेतनभोगी कर्मचारी मात्र. हालांकि नरेंद्र मोदी ने एक बात सही कही कि आज देश में जो भी सफल छात्र हैं उनके पीछे भी एक शिक्षक ही है और ऐसे शिक्षकों से ही आज हमारा देश चल रहा है.

पीएम साहब, शिक्षक दिवस पर आपको एक टीचर के रूप में दिखाया गया. तो क्या आप अपने इस छात्र के कुछ सवालों का जवाब देंगे? सवाल ये कि जिस पेशे को आप सम्मान के साथ ही विदेशों में भी ख्याति दिलवाना चाहते हैं उसके साथ कब तक एक वेतनभोगी कर्मचारी जैसे सम्मान को बंद किया जा सकेगा? हमारे देश में सेना की एक संगठन के रूप में इज्जत और मान दोनों है लेकिन शिक्षकों के संगठनों पर इस देश के कोने कोने में लाठियां चलना आम बात है. वो शिक्षक जो अपने हक को पाने में संघर्ष कर रहे हैं कैसे किसी छात्र को जीवन में संघर्ष करना सिखा सकते हैं? कब तक शिक्षक को इस देश में, व्यवस्था में एक पूरक माना जाएगा? कोई काम हुआ और कोई सरकारी नौकर ना मिला तो उसके बदले शिक्षक को लगा देने की व्यवस्था रोकने के लिए कोई उपाय कर रहे हैं आप? आप बच्चों के सवालों का जवाब देते हैं, खासकर निजी जिंदगी से जुड़े. लेकिन क्या आपने कभी शिक्षकों से जानने की कोशिश की है कि देश के सुदूर गावों में जीवन यापन के लिए स्कूलों में सीमित संसाधनों में बच्चे को पढ़ाने वाले शिक्षक का निजी जीवन कैसा होता है? ये जरूरी है क्योंकि ये जैसे होंगे वैसा ही कल ये तैयार करेंगे.


कोई छात्र शिक्षक बनने का विकल्प क्यों नहीं चुनता ये आप भी भली भांति जानते हैं और इस देश का हर एक छात्र भी. प्रधानमंत्री जी, इस देश में हर पल कुछ सीख रहे इस छात्र की सिर्फ इतनी विनती है आपसे कि शिक्षकों को जो दर्जा दिलाने की आप बात करते हैं उस दिशा में कुछ ठोस पहल कीजिए सर. आप हिसाब देते हैं, और मैं और कई और आपसे इस विषय पर सकारात्मक हिसाब की उम्मीद रखते हैं. निश्चित तौर पर मुझे सर्वश्रेष्ठ शिक्षक मिले, लेकिन उनको देखते हुए ही मैं ये कहना चाहता हूं कि जो मेरे जीवन की नींव बने, उनके जीवन की आर्थिक नींव बेहद हिली हुई होती है सर. ना तो इन पर लाठियां चलने दें और ना ही इन्हें चंद रूपयों में तौलें. बाकि हां सर, अगर आप शिक्षकों का भरोसा जगा रहे हैं और देश का पहला व्यक्ति बच्चों की क्लास ले रहा है तो ये जरूर एक अच्छी शुरूआत है लेकिन जो रास्ता तय करना है उस रास्ते की नहीं मुझे उस मंजिल के खूबसूरत होने का इंतजार है. 

No comments:

Post a Comment