कॉमनवेल्थ गेम्स के बाद से लगातार मैं ये सोच रहा था कि भारत में क्रिकेट को छोड़कर बाकी खेलों का क्या भविष्य है? क्या बाकी खेल आयोजनों के अवसर पर ही उन्हें याद करके भुला दिए जाने का सिलसिला बरकरार रहेगा, या इस स्थिति में कुछ बदलाव भी होगा. किसी भी परिस्थिति में एकदम से बदलाव की उम्मीद करना बेमानी बात है. लेकिन पिछले कुछ दिनों को ध्यान में रखें तो ये तो जरूर लग रहा है कि भारत अब खेलों के लिए पहले से ज्यादा जिम्मेदार और तैयार हो रहा है.
कॉमनवेल्थ खेलों की खबरों को टीवी पर ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि ये खेल सफल नहीं रहे या भारत में लोगों को इससे कोई सरोकार नहीं रहा. शायद अब भी टीवी चैनल या समाचार के माध्यम सोशल मीडिया की ताकत को समझने में गलती कर रहे हैं. ट्वीटर पर ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स लगातार ट्रैंड करते रहा. भारत ने जिस दिन भी पदक जीते हैं उसे लेकर कई ट्वीट और फेसबुक पोस्ट की गईं हैं. टीवी चैनल शायद इन खेलों में ग्लैमर नहीं ढूंढ पा रहे हैं लेकिन आज के भारत का युवा अपने हाथ में रखे मोबाइल से केवल फोन नहीं करता है. याद कीजिए सुशील कुमार के फाइनल के खेल को, सुशील क्रिकेट से इतर एक खेल सितारा बन चुके हैं इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिए.
कॉमनवेल्थ खेलों के बाद से एक बड़ा बदलाव जो मैंने महसूस किया है वो ये है कि अब हम खेलों और खिलाड़ियों के नाम लेकर बात करते हैं. नए भारत की नई पीढ़ी अब अपने क्रिकेट टीम के बजाए अपने देश की टीम से उम्मीद रखती है. ये बदलाव व्यापक नहीं है तो शायद आपको नजर ना भी आए लेकिन सच्चाई ये भी है कि बदलाव तो आया है. वरना #GoIndia जो कि कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत का आधिकारिक हैश टैग था वो 5वें स्थान से उपर नहीं आ पाता. लेकिन ये हुआ है मतलब कोई ना कोई वर्ग जरूर था जो लगातार इस खेल पर नजर रख रहा था.


देश के राष्ट्रीय खेल हॉकी को इस पूरी कड़ी में अपना नाम जुड़वाने के लिए काफी मेहनत करनी होगी. दरअसल खेलों की लोकप्रियता भी उनको मिली सफलता पर निर्भर करती है. सुशील, विजेंदर, अभिनव बिंद्रा और वो सारे गैर क्रिकेट नामों ने अपने प्रदर्शन से अपना नाम लोगों की जुबान पर लाया है. ये देश स्वागत करने को तैयार है आप परिणाम तो दीजिए. याद करिए कॉमनवेल्थ में भारत-पाकिस्तान के हॉकी मुकाबले को, जिसमें गोल करने के बाद सैल्यूट के पोज में दौड़ते शिवेंद्र सिंह किसे याद नहीं. क्रिकेट की लोकप्रियता इस देश में तभी बढ़ी है जब हॉकी में हम गिरने शुरू हुए. लेकिन अब किसी और खेल को गिराकर नहीं बल्कि सभी को खुद होकर आगे बढ़ना है.
निश्चित तौर पर ये बदलाव अचानक से नहीं आएगा. खिलाड़ियों, फेडरेशनों दोनों को इसके लिए काफी मेहनत करनी होगी. ग्लैमर का दूसरे खेलों से जुड़ना इस देश में एक नई और अच्छी शुरूआत है. खेल के मैदान पर लोगों को लाने के लिए जो खेल खेले जा रहे हैं वो जायज हैं. इसके कई पहलू भी हैं, पर सबसे अच्छी बात ये है कि अब हम और ज्यादा तैयार हो रहे हैं. इस नई शुरूआत से मुझे एक नई उम्मीद दिखती है... मुमकिन है वो कामयाब भी हो.
No comments:
Post a Comment