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6 Sept 2014

शिक्षक बनेंगे आप?

साभार - पीएमओ इंडिया
5 सितंबर. भारत में आज के दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. हर साल मैंने अपने छात्र जीवन में इस दिन को मनाया है. लेकिन इस बार का शिक्षक दिवस वाकई में अलग था. शायद देश के इतिहास में पहली बार कोई प्रधानमंत्री शिक्षक दिवस के मौके पर इस तरीके से बच्चों से सीधा संवाद कर रहा था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कार्यक्रम की काफी आलोचना भी की गई. ये कहकर कि बच्चों से सीधा संवाद ज़बरदस्ती आयोजित कराया जा रहा है. लेकिन फिर भी कार्यक्रम होना था और हुआ भी. मोदी ने अपनी बात भी कही और बच्चों की भी सुनी. छात्रों के सवालों के जवाब भी दिए और वो भी अपने तरीके से. लेकिन सवाल ये है कि मोदी अपनी इस पाठशाला से कुछ सीख दे पाए या ये सिर्फ एक खानापूर्ति करने वाला कार्यक्रम था. 

नरेंद्र मोदी अपने विजन की बात हर जगह कहते हैं. कई मौकों पर वो अपने विजन को पेश भी करते हैं. मोदी ने इस कार्यक्रम में भी अपनी बात कही. उन्होंने इस बात पर सवाल उठाया कि क्यों भारत में अच्छे शिक्षकों का अभाव हो रहा है. मोदी ने तो यहां तक कहा कि भारत को पूरी दुनिया में अच्छे शिक्षकों को तैयार करके एक्सपोर्ट करना चाहिए. सवाल वाजिब है. विश्व की दूसरी बड़ी जनसंख्या वाले देश में अच्छे शिक्षकों की इतनी कमी है. हमारी उच्च शिक्षा तो फिर भी बेहतर है लेकिन प्राथमिक शिक्षा में हमारी हालत वास्तव में बुरी है. मोदी ने अपने ही वक्तव्य में ये बात कही कि जब कोई डॉक्टर या इंजिनियर नहीं बन पाता है तो टीचर बन जाता है, ड्राइवर बन जाता है, क्लर्क बन जाता है. ये तुलना सोच कर नहीं की गई होगी, लेकिन ये सच को बयां करने के लिए काफी है. हम शिक्षक बनना नहीं चाहते, बस बन जाते हैं.

साभार - पीएमओ इंडिया
इसमें कोई शक नहीं है कि मोदी के इस कार्यक्रम ने शिक्षक दिवस को एक नई ऊंचाई दी है. खबरों की दुनिया में जिस दिन को केवल एक इवेंट के रूप में पेश किया जाता था वहीं आज मोदी ने पूरा मीडिया स्पेस शिक्षक दिवस को दिलवा दिया. अच्छी बात ये भी है छात्रों को अपने सवाल पूछने का मौका दिया गया. शायद ये सवाल उतने कड़वे और तीखे नहीं थे लेकिन ये एकतरफा संवाद से तो काफी बेहतर है. 15 अगस्त के बाद लगातार दूसरी बार मोदी इस तरीके से लोगों से मुखातिब हुए और दोनों ही मौकों पर उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में बालिका शिक्षा, बच्चियों के लिए स्कूलों में शौचालय जैसे विषयों पर बात की. आज भी उन्होंने बच्चों को सफाई का संदेश दिया. इस तरीके से नहीं लेकिन इस तरीके की बातें कई मंचो से कई बार की जा चुकीं हैं. अब सवाल ये है कि क्या इस व्यवस्था में बदलाव के लिए कोई ठोस कार्ययोजना बनेगी? 

एक बार फिर मैं इस सवाल पर आता हूं कि हमारे देश में अच्छे शिक्षकों की इतनी कमी क्यों है? क्यों अच्छी खासी पढाई कर चुके बच्चे शिक्षक नहीं बनना चाहते? इस सवाल का जवाब इतना कठिन भी नहीं है. हमारे देश में शिक्षा ज्ञानार्जन से ज्यादा इस बात को ध्यान में रखकर की जाती है कि इससे हमें कौन सी नौकरी मिलेगी. जब शिक्षा का उद्देश्य अच्छा रोजगार है तो ये बात साफ है कि कोई भी छात्र उसी ओर सोचेगा. देश में जिस तेजी से विदेशी कंपनियों का प्रवेश हुआ है, इनमें नौकरी की संभावनाएं बढ़ी हैं, बड़े-बड़े और आकर्षक पैकेज मिल रहे हैं वहां कौन बेहद ही सामान्य वेतनमान पर शिक्षक बनना चाहेगा? जब देश में बड़े बड़े वेतमान खुल रहे हों वहां कौन संविदा शिक्षक बनना चाहेगा?

मोदी जी आपने बात तो सही उठाई है लेकिन आप ये भी तो जानते होंगे कि प्राथमिक शिक्षा के लिए अब हमारी राज्य सरकारें शिक्षक नहीं शिक्षाकर्मी खोज रहीं हैं. जब एक पद को आप वेतनभोगी कर्मचारी में बदल देंगे तो आपको कर्मचारी ही मिलेंगे. ये आएंगे, उपस्थिति लगाएंगे, पुस्तकों के पन्ने पलटेंगे और फिर चले जाएंगे. अब इन्हीं से बनवा लीजिए आप कल का भविष्य. प्राइवेट स्कूलों की स्थिति भी कुछ अच्छी नहीं है. गली-गली खुल रहे स्कूल कैसे अच्छी खासी तनख्वाह पर शिक्षक लाएंगे? तो फिर सामान्य शिक्षकों से आप अपनी अगली पीढ़ी को तैयार कराने का ख्वाब कैसे देख सकते हैं. 

साभार - पीएमओ इंडिया
स्कूल का शिक्षक केवल शिक्षक नहीं होता है साहब. वो एक जनगणना का कर्मचारी भी होता है. बच्चों को गिनती सिखाने वाला ये शिक्षक हर दस साल में देश के लोगों की गिनती करता है. फिर चुनावों के समय लोकतंत्र के महायज्ञ में इनकी आहूति तो बनती ही है. हम कैसे भूल सकते हैं कि जिस मिड-डे मील के लालच में कई बच्चे स्कूल की चौखट तक पहुंचते हैं वो मिड-डे मील बच्चों को मिले इसकी जिम्मेदारी भी शिक्षक की होती है. पोलियो का अभियान बेहद जरूरी है, कौन करेगा? शिक्षाकर्मी है ना! अब इस सुपरमैन से इतना सब कराकर भी आप उसे क्या देंगे? वर्ग में बांटकर पैसा! शिक्षाकर्मी वर्ग 1-2-3. शाबाश. जो अपने आज से जूझता है वो कल के नागरिक कैसे पैदा करेगा? इनकी समस्याओं पर तो आप नजर डालते नहीं हैं. (इस मुद्दे पर पहले कुछ लिखा था यहां देखा जा सकता है - आवाज़ इन्हें भी चाहिए ) 

तो, आखिरकार ये सब जानने के बाद कौन शिक्षक, माफ कीजिए शिक्षाकर्मी बनना चाहेगा जरा ये भी बता दें. पहले समाज में शिक्षकों का जो सम्मान होता था कम से कम वही बचा रहता तो शायद एक ठोस कारण निकल कर आता. लेकिन सच्चाई सबको पता है साहब. आज मीडिया में आपको मास्टर की संज्ञा दी गई. मास्टर बनकर तो मास्साब की तकलीफ समझिए. हमारी युवा शक्ति सबकुछ करने में सक्षम है. मौके तो दीजिए लेकिन सम्मान के साथ. वरना तो हर एक से ये पूछना पड़ेगा कि शिक्षक बनेंगे आप?

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