एक सामान्य हिंदी भाषी मध्यम वर्गीय परिवार में 1996 की किसी शाम का वक्त था. BPL के कर्व्ड टीवी पर जो कि कलर था लोकसभा का सीधा प्रसारण आ रहा था. उस परिवार में 5 साल का एक बच्चा ना चाहते हुए भी अपने टीवी पर अपने पापा और नानाजी की वजह से टीवी में आ रही उस लोकसभा की बहस को देख रहा था. कभी कभी बोरियत हो जाने पर अपने खिलौने उठाता और घरवालों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए टीवी स्टैंड के ठीक सामने खेलता. तभी टीवी पर एक बुजुर्ग आता है. कुछ खर्राई सी आवाज है, लंबे लंबे पॉज लेता हुआ वो बोलता है. अपनी खिलौने वाली कार हाथ में लिया वो लड़का हाफ पैंट पहने टीवी के सामने खड़ा होकर उस बुजुर्ग से दिख रहे आदमी को सुनने लगता है...
वो बुजुर्ग सा आदमी उस वक्त का देश का प्रधानमंत्री था यानि अटल विहारी वाजपेई जी. आगे बहस में जो होता है उस बच्चे को समझ नहीं आता लेकिन ये जरूर समझता है कि कुछ जरूरी चल रहा है. बच्चा उस आवाज में खो जाता है, उन अटलजी को निहारते रहता है. चंद मिनटों में उसे नाम भी रट जाता है. वो सोचता रहता है कि ऐसा क्या है कि मां रसोई छोड़कर टीवी के सामने हैं, नानाजी परेशान हैं और पापा ऑफिस नहीं जा रहे. इतने में घर में एक निराशा भरी आवाज आती है, अटल जी की सरकार गिर गई. रसोई में बन रहे खाने को घर के दोनों बड़े आदमी खाने से मना करते हैं. मां खुद के लिए भी खाना ना बना कर बच्चों के लिए खाना बनाती हैं और वो बच्चा भी बड़ा बनने की कोशिश में खाना नहीं खाता.
उस दिन से उस बच्चे को राजनीति अच्छी लगने लगती है और अटल जी हो जाते हैं आइडल... अगले कुछ महीनों या शायद सालों में अटल जी फिर चुनाव जीतते हैं. पीएम बनते हैं और अटल जी का क्रेज उस बच्चे के सर चढ़कर बोलने लगता है. दुबारा पीएम बनने से पहले हुए प्रचार में अटल जी अविभाजित मध्यप्रदेश के एक छोटे से शहर रायपुर में एक सभा करने आते हैं. उसी घर के वही नानाजी जिन्हें मोतियाबिंद की दिक्कत है वो अटलजी को सुनने के लिए अपनी लूना से जाने की बात करते हैं. रैली शाम की होने के कारण घर में उनकी बेटी दामाद उन्हें मना कर रहे होते हैं लेकिन वो नाती अपनी जुगाड़ में लग जाता है. नानाजी जाएंगे तो मैं भी जाउंगा की जिद के साथ वो भी रैली में जाने का अपना सपना पूरा करता है.
मैदान में ढेर सारी होलोजन की लाइटें लगी होती हैं जो गर्मी बढ़ा रही होती हैं. तभी दूर से एक हेलिकॉप्टर चक्कर मारता दिखाई देता है. लोगों की खुशी तालियों में बदल जाती है. कुछ देर में अटल जी स्टेज पर होते हैं. सामने के डी और वीआईपी एरिया के बाद आम लोगों के लिए बने स्पेस में बांस बल्लियों पर वो बच्चा अपने नाना जी के पास लटक जाता है. तब रैलियों में लगने वाले भोंपू से वही टीवी वाली आवाज आती है. बहुत दूर में छोटे से हाथ हिलाते हुए माइक पर बोलते (चमकते) अटलजी दिखाई देते हैं. बच्चे का अटलजी को देखने का सपना पूरा हो जाता है. जैसे दशहरे, दूर्गा पूजा, गणेशोत्सव के मैदान से बच्चे खुशी खुशी लौटते हैं वैसे ही उत्साह के साथ अपने नाना की लूना में आगे पैरों को मोड़े, घुटनों को पेट में दबाए बैठा वो बच्चा घर वापस आता है.
इस बीच समय का पहिया घूमता है, नानाजी दुनिया में नहीं रहते. मध्यप्रदेश का वो छोटा सा शहर छत्तीसगढ़ की राजधानी में बदल जाता है. छत्तीसगढ़ बनाने का श्रेय भी अटलजी को जाता है. अटलजी एक बार फिर रायपुर आते हैं, इस बार राजधानी रायपुर में. वो बच्चा फिर अटलजी को देखने की जिद अपने पिता से करता है. ब्रीच कैंडी अस्पताल में घुटनों का इलाज कराने के बाद रायपुर आए अटलजी के लिए प्लेन से उतरने वाली लिफ्ट लगती है, आखों में काले एविएटर चश्मे पहने अटलजी बाहर निकलते हैं दूर खड़ा वो बच्चा उन्हें निहारता रह जाता है और सोचता है कि अटलजी तो पिछली बार से भी ज्यादा गोरे हो गए हैं.
बच्चे की उम्र से अंदाजा लग सकता है कि वो बच्चा तब अटलजी का फैन बन गया जब वो उनका वोटर तक नहीं बन सकता था. अटलजी आपमें ना जाने ऐसा क्या था कि उस दौर के हर बच्चे में ऐसी दीवनगी थी. वो नारा लिखा याद आज तक है "नजर अटल पर, वोट कमल पर" यानि सबकुछ अटल ही अटल. चुनाव प्रचार में लैंड लाइन में फोन पर आने वाली आवाज "मैं अटल विहारी वाजपेयी बोल रहा हूं" सुनकर सामने वाला अटलजी से बात होने के दावे करने लगता था. आपके प्रधानमंत्री रहते एक विज्ञापन आता था, "स्कूल चलें हम" विज्ञापन के मुताबिक वो आपकी ही कविता थी. वो शायद एकलौता सरकारी विज्ञापन होता होगा जिसे गुनगुनाने का मन करता था.
आप याद आएंगे अटलजी... कितने पीएम ऐसे हो सकते हैं जो कविता गाते दिखाई दें, अलबत्ता वो तो दो लाइन अर्ज करने से भी बचते हैं. कौन ऐसा प्रधानमंत्री हो सकता है जिसके सूप पीते, गोलगप्पे खाते विजुअल दिखें. आज किस पार्टी के शीर्ष नेता के हाथ पकड़ कर नचाने की हिम्मत कोई कार्यकर्ता कर सकता है. ऐसा कौन हो जो हमेशा मुसकुराता दिखाई दे सकता है. एपीजे अब्दुल कलाम साहब के साथ आपकी जोड़ी मुझे खूब पसंद थी, सुना था आप उन्हें हिंदी सिखाते थे. सर पर कैप, आंखो में एविएटर, बदन पर कुर्ता और कमर में बंधी धोती ये मिश्रण आप ही कर सकते थे. यूएन को देखना समझना आपसे शुरू हुआ क्योंकि आपने वहां हिंदी जो बोली थी.
जब वोटर नहीं थे तब आपके जीतने की दुआ करते थे. 2004 में लगा कि दुनिया 5 साल कैसे कटेगी. 2009 तक आप राजनीति से दूर हो गए. जब वोटर आई कार्ड हाथ में आया तो आप कैमरे, माइक पर दिखाई ही नहीं देते थे. आज तक किसी से कहा नहीं, पर आज लिख रहा हूं. राजनीति में एक ही नेता माना था अटल जी, वो आप थे. आपकी जगह कोई दूसरा ले नहीं सकता, शायद इसीलिए तबसे आजतक किसी भी चुनाव में वोट नहीं डाला. मालूम है आप दूर चले गए हैं. लेकिन आज के एचडी वीडियो भी आपकी उन क्लटर्ड और बज़िंग आवाज वाले भाषणों, कविताओं की जगह नहीं ले सकते. आप अटल हैं. ना कभी मेरे प्रिय नेता की जगह से हिले थे, ना कभी हिलेंगे. हमेशा अटल रहेंगे.