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30 Apr 2015

राहुल रिटर्न्स्

16 अप्रैल को 12 तुगलक लेन के बाहर खड़ी मीडिया को जिस बात का इंतजार था वो थी राहुल गांधी की एक झलक का. जिस शख्स को लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान कोई भी चैनल लाइव लेना नहीं चाह रहा था, नरेंद्र मोदी के शब्दों में कांग्रेस के इस शहजादे का जब पप्पू के नाम से सोशल मीडिया पर मजाक उड़ाया जा रहा था तब शायद किसी ने नहीं सोचा था कि यही मीडिया इस बेसब्री से राहुल गांधी का इंतजार करेगी. कैमरों को जैसे ही राहुल की गाड़ी दिखाई दी वो सब लगे राहुल की एक झलक को कैद करने में. लेकिन तब किसी ने भी नहीं सोचा था कि कांग्रेस के इस युवराज का जिसकी गैरमौजूदगी में पार्टी में दो गुट सामने आ गए थे सोशल मीडिया पर ऐसा स्वागत होगा. राहुल के वापस आने के बाद लोगों को ये लग रहा था कि कुछ नहीं बदला है. शायद ये सही भी हो, लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता.

ना तो ये चुनाव का समय है और ना ही राहुल को कांग्रेस में बड़ा पद पाने के लिए खुद को साबित करने की जरूरत है. राहुल खुद ऐसी शख्सियत हैं जो जब चाहें कांग्रेस की कमान संभाल सकते हैं. लेकिन वो ऐसा खुद नहीं चाहते, कम से कम दूर से तो यही लगता है. राहुल शायद वाकपटु ना हों, शायद उनके भाषण लोगों में जोश ना भरते हों, शायद उनका आक्रामक होना बनावटी लगता हो लेकिन इस बार का राहुल पसंद किया जा रहा है. लगभग 15 दिनों से ट्विटर पर राहुल लिखते ही सबसे बड़ा हैशटैग राहुल रिटर्न्स ही दिखाई देता है. ऐसा नहीं है कि उनकी वापसी का सीधा स्वागत हुआ हो लेकिन उन पर बन रहे मजाक को अब उतनी हवा नहीं मिल रही है. यहां तक कि लोग उनकी कोशिशों को सकारात्मक रूप में लेने लगे हैं. 

राहुल गांधी की जिस कोशिश का मैं सबसे बड़ा प्रशंसक बन रहा हूं वो है लोगों से जुड़ने की कोशिश. जरूर कई लोगों को ये सबकुछ बनावटी लगता हो, लेकिन मानिए मत मानिए सिर्फ 44 सांसदों के बावजूद कांग्रेस ने भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दे पर 300 से ज्यादा सांसदों की सरकार को सांसत में डाल दिया है. इस बिल पर जिस तरीके से राहुल गांधी और कांग्रेस ने अपनी कदम बढ़ाए हैं ये बिल किसी भी अन्य बिल की तरह सिर्फ पास नहीं हो सका. बल्कि इसे संसद में अब दोबारा लाने की जरूरत है. 

राहुल गांधी लौटते ही जिस तरह किसानों से मिल उससे उनकी भट्टा पारसौल वाली छवि याद आ गई. देश में बेमौसम बारिश के कारण मर रहा और रो रहा किसान राहुल से मिलने उनके घर पहुंचा दिखाई दिया. लेकिन राहुल के दूसरे वर्जन को लॉंन्च करने का असली मंच था रामलीला मैदान. जहां कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी. राहुल के कमबैक को पूरे तरीके से तो नहीं लेकिन काफी हद तक सफल कहा जा सकता है. दिल्ली में इतनी बड़ी तादात में लोगों का जमा हो जाना छोटी बात नहीं. (किराए की भीड़ भी हो तो भी बीजेपी जैसी पार्टी भी ऐसा करने में नाकाम रही है) इस रैली में राहुल आक्रामक जरूर नजर आए लेकिन बदले से नहीं. पर इस रैली से उन्होंने ये जरूर साफ कर दिया कि कांग्रेस इस मुद्दे को छोड़ने वाली नहीं है. 

लेकिन राहुल का वो रूप जो कि अविश्वस्नीय सा लगा वो इस रैली के ठीक एक दिन बाद सामने आया. संसद में किसानों के मुद्दे को उठाते हुए राहुल गांधी ने जो भाषण दिया वो अब तक के उनके श्रेष्ठ भाषणों में जरूर शामिल किया जाएगा. जहां कुछ समय पहले तक राहुल और कांग्रेस मीडिया स्पेस के लिए तड़प रहे थे वहीं राहुल का ये भाषण लगभग सारे चैनलों के प्राइम टाइम में दोबारा प्रसारित किया गया. प्रधानमंत्री मोदी के सूट से लेकर उनके अपने सांसदों के प्रधानमंत्री मानने जैसे तंज राहुल ने कसे जो इससे पहले उन्होंने कभी नहीं कहे, कम से कम इस रूप में तो नहीं. बीजेपी और पीएम मोदी को सलाह से लेकर, उद्योगपतियों की सरकार का आरोप राहुल ने लगाया. उनके भाषण की सबसे बड़ी खासियत ये रही की संसद के अंदर दिया गया ये पूरा भाषण रिकॉर्ड में जाएगा. लोगों के बीच चल रहे जुमले को राहुल गांधी ने बड़ी ही आसानी से सबके सामने लाकर इसे एक शाश्वत सच के रूप में रख दिया.

ज्यादातर बोलने से बचने वाले राहुल इसके बाद तो ऐसे दिखाई दिए कि वो सरकार पर लगातार तंज कसते रहे. अधिग्रहण बिल को एक कुल्हाड़ी की तरह किसान के पैर काटने वाला तक बता दिया. एक आदमी के बोलने पर सत्तापक्ष के 300 से ज्यादा सांसदों का हल्ला करना ही ये बता रहा था कि ये तंज कितनी गहराई तक असर कर रहे थे. इसके बाद राहुल केदारनाथ की यात्रा पर निकल गए. राहुल की छवि से अलग एक हिंदू पूज्य स्थल पर ठंड में उनका जाना बता रहा है कि राहुल अपनी छवि बदलने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. केदारनाथ में राहुल कुछ ना मांग कर भी भगवान की शक्ति मिलने की बात कहते हैं. पूरी यात्रा पैदल चलते हैं, जो शायद पीएम मोदी की वैष्णो देवी की यात्रा का जवाब हो जो कि कुछ दूरी तक खच्चर से पूरी की गई थी. 

इसके बाद अचानक से खबर आती है कि राहुल पंजाब जाएंगे, पंजाब जाने के लिए राहुल ने ट्रेन पकड़ी. आश्चर्य! लेकिन उससे बड़ा आश्चर्य ये कि राहुल ट्रेन के जनरल डब्बे से यात्रा करने निकले. राहुल के जनरल डब्बे में जाने पर कई तंज कसे गए लेकिन शायद हम सब भक्ति में ये भूल गए कि जब पीएम मोदी दिल्ली में मेट्रो की सवारी कर रहे थे तो उस बोगी में कोई आम आदमी दिखाई नहीं दिया था. यहां तक की वो आम मेट्रो थी भी नहीं. पीएम ने एयरपोर्ट लाइन की अपेक्षाकृत मंहगी और कम भीड़ वाली मेट्रो की यात्रा की थी. तो राहुल का ऐसे जनरल डब्बे में जाना क्या बुरा है. मैं तो इस यात्रा की सराहना करता हूं. राहुल की टी शर्ट पहनकर की गई यात्रा उस कुर्ते वाली इमेज से अलग है, जहां दिखावे की कोशिश होती है. जनरल डब्बे की सुविधाएं कितनी कम होती हैं ये हम सब जानते हैं. पंजाब में अनाज मंडी में जाकर राहुल किसानों से मिलने उपर कूद कर चढ़ जाते हैं. राहुल की ये यात्रा सिर्फ दिखावा थी तो क्यों राहुल के जाने के कुछ समय बाद ही राज्य सरकार ने अनाज खरीद की घोषणा की?

पंजाब के बाद महाराष्ट्र में पदयात्रा पर निकलने से पहले राहुल ने संसद में एक बार फिर प्रधानमंत्री पर निशाना साधा. सोशल मीडिया में जो पीएम का मजाक बन रहा है राहुल ने उसे हल्के तरीके से संसद में उठाया लेकिन इस बार वो पप्पू नहीं बने. राहुल रोर से लेकर राहुल इन पंजाब के हैशटैग उनका समर्थन कर रहे हैं. उन्हें ट्यूबलाइट जैसा बताने वाले बयान ही बता रहे हैं कि कोई तो खिसियाहट हुई है. राहुल महाराष्ट्र की पदयात्रा पर निकले हैं. भारतीय राजनीति में ऐसी यात्राओं ने ऐतिहासिक बदलाव किए हैं. राहुल की यात्रा का परिणाम तो समय बताएगा लेकिन राहुुल गांधी की इस कोशिश से किसानों के मुद्दे को टीवी चैनलों की प्राइम टाइम डीबेट में जगह मिल गई है इसके लिए वो बधाई के पात्र है. अब शायद किसानों के लिए कुछ छोटी योजनाएं बनाकर उनका बड़ा ढोल पीटा जाएगा. राहुल को इससे राजनीतिक लाभ हो ना हो, मौत के फंदे में झूल रहे किसान की मजबूरी पर हम कम से कम RIP  तो लिखना शुरू कर रहे हैं. 

उम्मीद करता हूं कि अगर ये दिखावा है तो ऐसा दिखावा जोर शोर से किया जाएगा. इस दिखावे के कारण ही सही हम वो तो देख पा रहे हैं जो कि ग्लैमरस नहीं है. सड़ा अनाज और किसी मजदूर से दिखने वाले किसान की लाश को चमकते हुए स्क्रीन पर दिखाने के लिए इस दिखावे का शुक्रिया. आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश में महामारी फैली है, किसानों की आत्महत्या की महामारी. देखते हैं कि अब कौन इससे निजात दिला पाता है. राहुल का पार्ट 2 भी इसमें फेल रहा तो ये राहुल गांधी ये ज्यादा हमारा असफल होना होगा.