लोकतंत्र के गलियारे में विरोध की एक गली
जंतर-मंतर से उपजी एक पार्टी – आम आदमी पार्टी. किसने सोचा था कि हाल में ही बनी
एक पार्टी सत्ता के केंद्र तक पहुंच जाएगी? किसने सोचा था कि गली मोहल्ले की बात
करने वाली पार्टी देश की राजधानी में राज करेगी? आपने सोचा हो पर मैनें तो कभी ऐसा
नहीं सोचा था. पर अब सच्चाई कहिए या चमत्कार, परिणाम हम सबके सामने है. दिल्ली में
आम आदमी पार्टी की सरकार है. जनाक्रोश को जितने बेहतर तरीके से इस पार्टी ने
इस्तेमाल किया शायद ही किसी राजनैतिक दल ने आज के समय में ऐसा किया हो. लेकिन
सत्ता हासिल कर लेना ही अंतिम सफलता नहीं होती. आम आदमी पार्टी ने लोकतंत्र में
लोगों का जो भरोसा बढ़ाया है वो शायद इसकी सबसे बड़ी सफलता है, सत्ता पाने से भी
ज्यादा बड़ी लेकिन फिर भी रास्ता बहुत लंबा है, मंजिल बहुत दूर है।
जब अन्ना के आंदोलन से अलग
राजनैतिक दल बनाने का रास्ता इन्होंने चुना था तो इस देश के कई युवाओं ने अपने आप
को ठगा सा महसूस किया था. वो युवा जो गांधी के समय में पैदा भी नहीं हुआ था देश
में एक और असहयोग आंदोलन के लिए खुद को और देश को तैयार कर रहा था. दिल्ली में
अन्ना की गिरफ्तारी की बात चलती और पूरे देश में लोग अपनी गिरफ्तारी देना शुरू कर
देते. अन्ना के आंदोलन में जाने के लिए छोटे शहरों में धरने देने के लिए युवा अगर
अपने स्कूल-कॉलेज को छोड़कर प्रदर्शन में भाग लेने लगे थे तो ये आधुनिक असहयोग
आंदोलन की शुरूआत ही तो थी. लोकिन एकदम से एक घोषणा और आंदोलन के बजाए पार्टी का
उदय. और यही वो कारण था जिसकी वजह से "आप" को इतनी बड़ी सफलता की उम्मीद हर एक को
नहीं थी. लोग पार्टी से जुड़े जरूर थे पर उस संख्या में नहीं जिस संख्या में लोग
आंदोलन से जुड़े थे. इगर ऐसा होता तो आज आम आदमी पार्टी को दिल्ली में समर्थन की
भी जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन फिर भी पूरा श्रेय दोना होगा अरविंद और उनके सहयोगियों
को जो अपने रास्ते पर चलते रहे और सफलता हासिल करके ही माने.
आम
आदमी पार्टी की सफलता का श्रेय योगेंद्र यादव और इनकी टीम को भी देना होगा. मुझे
अब भी लगता है कि इस पार्टी की सफलता में एक रणनीति ने भी काफी योगदान दिया है.
लोगों के बीच सहज, सुलभ और चर्चा का कारण बनने की रणनीति. खुद ही सोचिए एक पार्टी
जिसका नाम ही आम आदमी पार्टी है उससे देश का हर आम (खासकर मध्यम और निम्न
वर्गीय) आदमी खुद को जोड़ता
है. कम से कम इसके नाम से, इस पार्टी के नाम ने ही खुद को देश के एक बड़े वर्ग की पार्टी
साबित कर दिया. अब इसके संक्षिप्त नाम को देखिए – “आप” एक ऐसा नाम जो हर रोज एक
दूसरे के लिए संबोधित किया जाता है. अब अगर कोई कहे कि मैं तो आप को जीतता हुआ
देखना चाहता हूं तो इसके अर्थ में व्यक्ति के साथ-साथ पार्टी की जीत भी दिखाई देती
है. चुनाव चिन्ह झाड़ू, एक ऐसी चीज जो हर घर में होती है. झाड़ू का उपयोग सफाई के
लिए होता है और इन्होंने राजनीति की सफाई की बात हर जगह की भी. इसके अलावा टोपी
जिस पर कई तरह के नारे लिखे होते थे ये भी तो आंदोलन से ली गई थी. बस "मैं अन्ना
हूं" कि जगह "मैं हूं आम आदमी" ने ले ली थी. इसके अलावा प्रचार के नए तरीके और कई ऐसी
बातें थीं जो अब तक भारतीय राजनीति में नहीं देखी गईं थीं. हालांकि ये बात भी सच
है कि केवल प्रचार की रणनीति से चुनाव नहीं जीते जाते, सो चुनाव जीतने का श्रेय भी
इनसे नहीं छीना जाना चाहिए. लेकिन मानना पड़ेगा अरविंद ने पूरे प्रचार के दौरान
कभी नहीं कहा कि वो चुनाव हारने जा रहे हैं. हर सवाल का एक ही जवाब, चुनाव तो जनता
लड़ रही है, जनता हारेगी अगर हारी तो. एक बेहतरीन राजनैतिक जवाब.
अरविंद ने राजनीति में उन बातों को मुद्दों के रूप में पेश किया है जिन्हें शायद इससे पहले कोई भी मुद्दा नहीं मानता था. चाहे वो लाल बत्ती की बात हो, या राजनेताओं के वीआईपी कल्चर खत्म होने की बात. पहले ये मिसाल के रूप में बातें पेश की जाती थीं पर अब यही सच्चाई रहेगी. बिजली, सड़क और पानी तो हमेशा से लोगों के मुद्दे रहे हैं पर अरविंद ने एक ऐसे मुद्दे को लोगों के सामने उठाया जो लोगों के सामने तो हमेशा से ही था. ये था भ्रष्टाचार का मुद्दा. किस राजनैतिक दल ने सोचा होगा कि एक पार्टी जिसके पास ना तो वीआईपी नेता हैं और ना ही ढेर सारा फंड दिल्ली में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आएगी. लेकिन ऐसा संभव हुआ तो उसके कई कारण हैं लेकिन सबसे बड़ी बात जो मुझे लगती है वो है बड़े राजनैतिक दलों की लोगों से दूरी. आम आदमी पार्टी ने जिस तरीके से लोगों से खुद को जोड़ा वो अन्य राजनैतिक दलों के लिए एक मिसाल है. सभी राजनैतिक दलों को अब लोगों के बीच इसी तरीके से या इससे बेहतर रूप से जाना होगा. राहुल गांधी ने ये बात स्वीकारी है, अन्य ने नहीं स्वीकारी पर मुझे पूरा यकीन है कि वो भी ऐसा करेंगे जरूर.
लेकिन सरकार में आने के बाद अरविंद के सामने कई चुनौतियां होंगी. इसमें सबसे बड़ी चुनौती होगी राजनीति के इस कीचड़ में खुद को साफ रखना. अरविंद पहले ही कह चुके हैं कि अन्ना ने राजनीति को कीचड़ बताकर अरविंद को उसमें जाने से मना किया था. लेकिन अरविंद इसकी सफाई की बात कहकर इसमें उतरे हैं. सफाई अच्छी बात है लेकिन इस सफाई के लिए खुद पर कीचड़ लगाना बुद्धिमत्ता नहीं है. अरविंद की सरकार बने 10 दिन हुए हैं. 6 महीने तक सरकार गिरना संभव नहीं. लोकसभा चुनाव से पहले खुद को साबित करने के लिए 2 महिने हैं. 10 दिन में 10 बड़े फैसले या घोषणाएं तो कर ही चुके हैं.
"आप" भी यहीं हैं और हम भी यहीं, आगे आगे देखिए होता है क्या. फिलहाल तो लोकतंत्र में मेरा भरोसा बढ़ाने के लिए शुक्रिया अरविंद. शुक्रिया ये बताने के लिए कि विकल्प हो तो उस पर भरोसा करना चाहिए. विकल्प सही निकले ना निकले, पुराने ढर्रे जरूर बदलने लगते हैं.