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21 Jan 2013

प्रकाश झा से बातचीत...



प्रकाश झा हिन्दी फिल्म उद्योग का जाना माना नाम है। फिल्म निर्देशक के रूप में प्रकाश झा ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। प्रकाश झा कि फिल्मों का विषय हमेशा से आम आदमी से जुड़ा हुआ होता है। पिछले दिनों प्रकाश झा जेएनयू (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) आए थे वहीं उनसे बातचीत हुई।

प्र. फिल्में समाज को किस ओर ले जा रहीं हैं? और फिल्म बनाने का आपका उद्देश्य क्या है?

उ. फिल्में समाज को किसी ओर ले जाती हैं ऐसा मैं नहीं मानता। समय और सोसाइटी की प्रभाव फिल्मों पर पड़ता है। फिल्म केवल मनोरंजन का साधन है। आज सिनेमा में सबके लिए जगह है। शुद्ध मनोरंजन और उद्देश्यपरक फिल्मों दोनों के लिए जगह है।
      और फिल्म बनाने का मेरा उद्देश्य मेरे अंदर संचित ज्ञान को बताना है। यह मेरे लिए खुद को अभिव्यक्त करने का माध्यम है पर कमर्शियल सिनेमा होने के कारण कुछ समझौते किए जाते हैं।

प्र. आपकी फिल्मों में समस्याएं होती हैं पर समाधान नज़र नहीं आता?

उ. मैं भी एक आम आदमी के समान हूं जो चीज़ों को बता और दिखा सकता है पर समाधान नहीं बता सकता। समाधान इतने आसान होते तो शायद इन फिल्मों की आवश्यक्ता नहीं होती। समाधान इतने आसान नहीं हैं। फिल्में बनाकर मैं उत्तर खोजना दर्शकों पर छोड़ता हूं।

प्र. आपकी फिल्म के नायक भी कभी-कभी खलनायक नज़र आते हैं?

उ. मेरे विचार से नायक ही खलनायक होते हैं। उनके अंदर का खलनायक ही उन्हें नायक बनाता है।

प्र. आरक्षण और चक्रव्यूहजैसी फिल्मों भी आपने किसी का पक्ष नहीं लिया?

उ. मैं कोई सामाजिक कार्यकर्ता नहीं हूं। मैं सिर्फ एक फिल्म मेकर हूं। फिल्मों में मैं नहीं मेरे किरदार बोलते हैं। आप मेरे किरदारों को समझिए शायद आपको मेरा पक्ष समझ आ जाए।

प्र. आपकी फिल्मों में सामाजिक समस्याओं को उठाया जाता है। कोई खास वजह?

उ. मेरी फिल्मों में सामाजिक मुद्दे ना होकर सामाजिक आंदोलन होते हैं। मैं उसके प्रति चिंतित हूं जो कि समाज में हो रहा है। पर मुझे अपनी फिल्मों में दोनों पक्ष रखने पड़ते हैं।

प्र. चक्रव्यूह फिल्म के मंहगाई गाने पर हुए विवाद पर क्या कहना चाहेंगे?

उ. इस राष्ट्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होकर भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। सेंसर बोर्ड ने पहले तो उन शब्दों को हटाने के लिए कहा फिर बाद में पूरा गाना ही हटाने के लिए कहा। हालांकि बाद में इस विवाद को सुलझा लिया गया। लेकिन एक फिल्म मेकर के रूप में ऐसी बातें बड़ा परेशान करती हैं। अब देखिए ना मायावती जी ने बिना फिल्म देखे ही आरक्षण को बैन कर दिया था।

प्र. फिल्म बनाने के लिए क्या आधार रखते हैं?

उ. मेरी फिल्मों का आधार खबरें होती हैं। फिर उस पर पढ़ा जाता है, लोगों से मिलकर उस पर बात की जाती है। लेकिन सबसे ज्य़ादा ज़रूरी किसी आइडिया का क्लिक करना है। बाद में उस आइडिए पर रिसर्च होता है और तब फिल्म तैयार की जाती है।

प्र. आपने राजनीति में भी हाथ आज़माया है, आगे की क्या योजना है?

उ. अब मेरा राजनैतिक जीवन समाप्त हो गया है। लोजपा (लोक जनशक्ति पार्टी) चुनना मेरी गलती थी। मैं कभी सांसद बनना चाहता था ताकि अपने क्षेत्र और आम जन की सेवा कर सकूं। मैं अब फिल्मों में ही खुश हूं।